बडी फुरती से मैं रसोई के काम निपटा रही थी।ये मेरे लिए नया था। शादी के दो सालों में कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैं रसोई अकेले चलाऊँ, मेरी जेठानी हमेशा ही बडी कुशलता से सारे घर का कार्य-भार संभाले रखती थीं।कहने से पहले फरमाइशें पूरी करने वाली मेरी जेठानी ने कभी घर-गृहस्थी का भार मेरे कंधों पर पडने ही नहीं दिया। सारा दिन रसोई में बर्तनों की खनक पर थिरकती जेठानीसा आज रसोई से नदारद थीं। कारण था कल शाम उनके पैर में आई मोच।
उनकी एडी की सूजन और उनकी आँखों से छलकता दर्द काफी था ये समझने के लिए की उनकी चोट गहरी थी। मैंने बडी जिद्द की.... मगर जेठिनीसा हट किए रहीं की मामूली सी चोट है, अपने आप ठीक हो जाएगी। उन्होंने उस मोच को कतई तवजजो़ नहीं दी... न आराम.. न इलाज। मैं उनकी मजबूत शख्शियत से प्रभावित हुँ किन्तु दर्द सहना कहाँ तक सही।
दर्द तो लाज़मी है। जिन्दगी है तो चोटें हैं, चोटें हैं तो दर्द है। मगर इस दर्द को सहना हमारा निजी मसला है। हम औरतें न.. कभी व्यस्तता, कभी  अज्ञान, कभी खुद की बेकदरी... हमेशा कुछ ऐसा ज़रूर होता है जो हमें अपनी देख भाल करने से रोकता सा है। दर्द को अपनी जिन्दगी का हिस्सा बनाना  हमारी आदत सी है....
जेठनीसा अगले ही दिन से फिर अपनी थिरकन में रम गईं कभी लंगडातीं, कभी दर्द से हार कर बैठ जाती...
घर और रसोई को फिर अपना कद़रदान मिल गया.... बस एक दर्द था...एक मर्ज... उपेक्षित... लाइलाज़..
पुनच्श्रः-- एड़ी की मोच मामूली दिखने  वाली समस्या भले ही लगे मगर सही rehabilitaion  के  आभाव में एड़ी हमेशा के लिए कमज़ोर और अत्यधिक लचीली हो सकती है... जिस कारण बार बार मोच और fractue भी हो सकता है। दर्द को नज़रंदाज़ न करें... छोटी चोट बडी न बनने दें।
WE CAN HELP.... STOP THE PAIN





Comments

Popular posts from this blog

मियाँ गुमसुम और बत्तो रानी

kanch ka fuldaan aur kagaz ke ful