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माँ का साथ

आज कहानी नहीं... कहानियां हैं... छोटे छोटे किस्से हैं एक माँ और उसकी नन्हीं बिटिया के। किस्से उनके प्यार के... तकरार के...और इस कहानी का मुख्या किरदार है स्कूल। ये कहानी जीवन के आईने से निकाल कर लायी हूँ जिसमें एक माँ की कश्मकश है... उम्मीद करतीं हुँ इस कहानी से हर नयी माँ को कुछ सीखने मिले। तो कहानी है स्वरा और उसकी बिटिया ध्वनि की....                                                   --------******-----1-----******-------- दिन का खाली वक़्त था और स्वरा अपनी बेटी ध्वनि के साथ खेल रही थी। थकान से कुछ ऑंखें बंद सी हो रही थी मगर ध्वनि की आँखों से नींद नदारद थी। वो तो अपनी चहलकदमी में मग्न थी। सारे खिलौने फैला रखे थे और उनमे कभी रंग बताती तो कभी आकार। अभी तो अपने दूसरे जन्म दिन से भी २ महीने दूर थी मगर ध्वनि बहुत कुछ बोल लेती थी। ABC, 123, colors, animals, shapes सब बता लेती थी।  अपना नाम और पापा का नाम भी कह लेती। स्वरा बड़ा गर्व महसूस...