मैं : क्या बात हैं माँ , किस उलझन में हो ?
माँ : बेकार ही इतनी महंगी दवाइयां लीं।
मैं : अरे ! डॉक्टर को दिखवाना था। अब डॉक्टर ने कहा है तो दवाई तो लेनी होगी न।
माँ : क्या दवाई, कोई फायदा नहीं होगा।
मैं : क्यों नहीं होगा, पूरी दवाई खाओगी तो ज़रूर आराम होगा।
माँ : कैसे खाएंगे पूरी दवाई ?
मैं : अब इसमें क्या दिक्कत है।
माँ : सुबह उठते ही पहली गोली शुरू करनी है , और हर दो घंटे पे एक खुराक है।
मैं : होमियोपैथी के डोज़ ऐसे ही होते हैं, याद रखना या अलार्म सेट कर लेना।
माँ : और पूजा पाठ ? सबह 3- 4 घंटे तो पूजा में ही लगते हैं, और बिना पूजा किये तो हम कुछ भी नहीं खा सकते... दवाई भी नहीं।
लो जी, बात ही ख़त्म। माँ के भगवान् और उनकी पूजा से बढ़कर कुछ नहीं है। सही कह रही थी माँ, बेकार ही इतनी महंगी दवाइयां ली। ग्यारह बजे से तक पूजा होगी , फिर घर के हर सदस्य के खाने पीने की खबर पड़ताल, फिर ठाकुर जी का भोग , आरती.... तब कहीं जा कर माँ का भोजन। सदा से माँ की यही दिनचर्या रही है। नाश्ते से माँ का कभी सरोकार ही नहीं रहा। Six mini meals a day ये तो माँ को बेवकूफी लगती है.... कहेंगी बस खाते ही रहो दिन भर। लाख समझाने के बाद भी माँ अपने तरीकों से नहीं हिल सकती.... संभवतः यही कारन है माँ के दर्द का... दवाइयों के काम न कर पाने का..... खान-पान की लापरवाही का असर ही तो है ये सब।
मैं यही सब सोच रही थी की घर आ पहुंचे हम। पापा ने पूछा तो माँ बोलीं ' अरे बेकार डॉक्टर है, बस वही नाश्ता, खाना, ऊपर से हर दो घंटे की दवाई..... सुबह से गोली खा लें... ठाकुर जी को न देखें।' पापा भी चुप रहे.... असल में हम सब माँ के इस ठाकुर जी के तर्क के आगे चुप ही रहते है.... और हमारी यही चुप्पी माँ को बढ़ावा देती रही.... और शायद माँ के दर्द को भी....P.S. : Breakfast is the most important meal of the day. लगभग हर घर में माँ , भाभी, बहन...... इसी आदत से खुद अपने स्वास्थ्य को नुक्सान पंहुचा रही हैं। बात भगवन की सेवा या पूजन विधि की नहीं है.... बात गलत तरीकों की है। ठाकुर जी भूखे रहने प्रासां नहीं होते.... और हर बात का defense ठाकुर जी नहीं हैं....
अब चुप न रहें... अपनी माँ से जिद्द करें... "माँ आ आज साथ बैठ कर नाश्ता करते हैं "
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