पुरानी नयी बहु आज पहली बार गाँव  आयी थी। पुरानी क्योंकि ब्याह को काफी वक़्त हो गया था और नयी क्योंकि हमारे गाँव  के रिश्तेदारों ने तो उसे आज पहली ही दफा देखा था। वो बड़ी तहज़ीब से झुक झुक कर सभी के पैर छू रही थी और बदले में ढेरों आशीर्वाद बटोर रही थी। नीली साड़ी के सुनहरे पल्ले से झांकता उसका खूबसूरत चेहरा परेशानी की लकीरों से रंगा पड़ा था। सबको लगा शहर में अपनी सहूलियत की कपडे पहनने वाली पुरानी नयी बहु यहाँ साड़ी  में परेशानी महसूस कर रही थी। मगर पुरानी नयी बहु के नज़रिये से बात इससे भी बडी थी। हाँ साड़ी  उसे कुछ परेशान तो कर रही थी मगर उससे ज्यादा परेशान कर रहा था उसे उसकी कमर का दर्द।  चार घंटे का सफर गाड़ी में बैठे बैठे और ऊपर से गाँव की सड़क की गड्ढे।  कमर का बुरा हाल था और अब यहाँ झुक झुक के पैर छूना। जितना उत्साह था उसे गांव आकर सबसे मिलने का था, वो छूमंतर होने लगा था।  सारा श्रृंगार दर्द से छुप गया और घंटों की गप्पों का मन बना कर आयी पुरानी नयी बहु अब बस बिस्तर पे लेटकर अपने दर्द से आराम चाहती थी।  ये तो न चाहा था उसने ..... अब मायूसी और दर्द हद् के पार थे और पुरानी  नयी बहु सच में दुखी .....
पुनश्च :- ऐसा अक्सर होता है कि दर्द उत्साह पे हावी हो जाता है और हम दर्द के ग़ुलाम।  हमारी दिनचर्या के बहार कुछ भी अमूमन हमे थकता या दर्द ही देता है।  कभी सोचा है ऐसा क्यों होता है ? इसका स्वस्थ हैं, किसी  से पीड़ित नहीं  है मगर हम फिट नहीं है।  कहने का मतलब हम भीना किसी रोग के अपनी दैनिक कार्यप्रणाली को तो अंजाम दे देते हैं मगर यदा कड़ा आने वाली यात्रा या नए अनुभव हमे थका देते हैं और हमे हमारे पुराने छुपे दर्द से रूबरू करवाते हैं।  
निष्कर्ष ये की हमे हैल्थी से फिट का सफर तय करना है ताकि जिंदगी जब बुलाये हम मनचाहे सफर  सकें।  

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