कल शाम हम एक शादी में गए थे, खुशनुमा माहौल, रौशनी, संगीत, लज़ीज़ खाना और बुफे सिस्टम।मैं अपनी ढाई साल की बिटिया के साथ महफ़िल का आनंद ही ले रही थी की एक बड़ी ही कौतुक बात ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। बुफे सिस्टम का मतलब है की खाना स्टाल्स में लगाया गया है और सभी स्वयं परोस कर खाएंगे। ये प्रणाली अमूमन खड़े हो कर खाने के तरीके पर काम करती है। हालंकि मैरिज गार्डन में कुछ कुर्सी टेबल का इंतज़ाम भी होता है। बस किस्सा इन्हीं कुर्सी टेबल का है.... भाई एक औसतन मेज़बान बुफे सिस्टम लगवाते वक़्त पाच सेेट वाली कुछ कुरसियों का इंतज़ाम करता है.... सो ज़ाहिर है ज्यादातर लोग खड़े होकर ही खाएंगे। यानी यदि हम मेहमानों की प्रोबेबिलिटी लगाए तो सिटींग अरैंजमेंट बुज़ुर्ग, बच्चों या ज़रूरतमंदो के लिया ही रहता है। मगर इस महफ़िल में तो जी किस्सा कुर्सी का चल रहा...... मैंने देखा कुर्सियां असल में थक कर बैठने के काम आ रही थीं। और थकान भी क्या जनाब.... कुछ पल खड़े होना ही दूभर लग रहा था... अच्छी खासी दिखने वाली महिलाएं भी अपने पैरों के बजाय कुर्सियों पे सुसज्जित दिख रही थी। जिसे देखो वो ही बैठने की ठिकाने ढूंढ रहा था। इसका श्रेय शादी की थकान, बारात का नाच या उन हाई हील्स को कतई नहीं जाता। ये थकान और खड़े न हो पाना तो कुछ और ही कहानी बताती है।ये सच है अपने आस पास देखें तो आपको अहसाह होगा की बड़ी सेिडेंटरी लाइफ हो गयी है हमारी। फिजिकल एक्टिविटी के नाम पे कुछ भी तो नहीं करते हम.... बस बैठे रहते है और जो कभी खड़े होना बी ही पड़े तो कुर्सियां ढूंढते रहते है। इसे मात्र कौतुक न समझें ये इशारा है अब उठ खड़े होने का....
indulge in physical activity..........leave the chair
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