She remembered who she was and the game changed..
नीलिमा मायूस सी ख़ड़ी देखती रही उस छोटे से कागज़ के टुकड़े को जिस पर उसने अपनी ज़रूरत की चीज़ों की लिस्ट बनायीं थी। कागज़ की सुन्दर लिखावट उसे याद दिला ही रही थी की वो किस कदर अपने कॉलेज की सबसे अच्छी स्टूडेंट थी और सभी टीचर उसकी तारीफें करते नहीं थकते थे.... की सारे अक्षर धुंधलाने लगे.... आँखों में आंसू तैर आये और ज़हन में सवाल... ऐसे किसे कह दिया मृणाल ने... 'जाओ अपना सामान खुद ले के आओ' .... घडी पे नज़र पड़ी तो ख्याल आया वक़्त बहुत हो गया है... सच वक़्त तो बहुत हो गया... और वक़्त के साथ सब बदल गया। जो मृणाल उसे चाहता था उसे सराहता था वो इतना निष्ठुर कैसे हो गया। शादी के बाद शायद हर लड़की ससुराल और पति के सांचे में ढलती है मगर नीलिमा ने तो खुद को पूरी तरह बदल लिया ताकि वो पति और ससुराल के साथ ताल मेल बना सके। नीलिमा के लिए तो सच सब कुछ ही बदल गया था। वो यूनिवर्सिटी टॉपर थी... आज़ाद ख्यालों वाली आज के ज़माने की लड़की थी। उसके घर वालों ने उसे आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनाया था। अपने घर का बेटा थी वो। कॉलेज की सबसे स्मार्ट लड़की मृणाल के प्यार में पड गयी। सब खूबसूरत था... मृणाल उसे समझता था और उसके टैलेंट की क़द्र करता था... हमेशा उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता था। जैसे नीलिमा पंछी और मृणाल नीला आकाश..... उड़ान अंतहीन थी। मगर शादी के बाद सब बदल गया.... मृणाल के घर वाले पुराने ख्यालात के थे और उनके आगे मृणाल भी मजबूर था.... वो नीला आकाश छोटा और संकुचित पिंजरा बन कर रह गया। नीलिमा उस पिंजरे में कैद हो गयी और उसके पर कतरा कतरा टूट के बिखर गए। वो हर बात के लिए मृणाल और घर वालों पर निर्भर थी..... मायके के "बेटा" से ससुराल की "बहु" तक का सफर बड़ी जल्दी गुज़रा मगर नीलिमा को पूरी तरह बदल गया.... अपना और घर का सारा काम खुद करने वाली नीलिमा आज चंद सामान के लिए मृणाल के आगे पर्ची लिए खड़ी थी और दुत्कार भी झेल रही थी। अब दुख नहीं गुस्सा था खुद पे... कैसे भूल गयी वो खुद को इतना...
पुनश्च :- हम औरतें अपनों की दुनिया सँवारने में इतनी मसरूफ हो जाती है की हमारी खुदी कही खो जाती है। सब की ख़ुशी के लिए सबके अनुरूप बनाने में हम पूरी तरह बदल जाते हैं। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक रूप से हम वो नहीं रहते जो हम थे। देखिये खुद को आईने में.... जो सामने नज़र आ रही है क्या आप वो हैं... या कुछ बदली सी हैं... ये बदलाव शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक हो सकते हैं... क्या फिर सी अपने पुराने रूप में लौटने का जी नहीं करता... वो कॉलेज की लड़की....
इतना भी क्या गरज़-दार बना दिया...
तूने तो मुझे तालब-गार बना दिया...
इतने भी ज़रूरतमंद न थे हम...
जितना तूने आज बना दिया....
कहानी जानी पहचानी सी लगी???? कभी कभी हम अपनों के लिए इतना बदल जाते है की खुद को कही खो बैठते हैं। नीलिमा की कहानी छोटे बड़े रूप में हम सब औरतों के जीवन की कहानी है। नीलिमा बस एक किरदार है जो अपनी जीवन की व्यथा में आपके जीवन का प्रतिबिम्ब दिखती है... नीलिमा के साथ सहानभूति न रखें क्यूंकि मेरी कहानी की नीलिमा आज खुद को फिर खोजेगी....
दिल को रशक़ आता है दिल के हाल पे....
आज नीलिमा खुद अपने हाल से नाराज़ है। ये कहाँ ले आयी मोहब्बत उसे। सफर की शुरआत से फिर दोहराया उसने सब कुछ। और कुछ नहीं बस खुद को ही पाया उसने...याद आ गयी उसे वो नीलिमा जो वो असल में थी.... बस वहीं से सब बदल गया।
फिर कुछ नयी शुरुआत करतें हैं... शरीर को ही वो पहले वाली छवि देते हैं... चलिए फिर फिट बनते हैं... जो फिट है वो मानसिक और भावनात्मक रूप से भी सशक्त है.... नीलिमा ने तो खुद को याद कर के सब बदल लिया , अब बारीआपकी है........
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