आज जब मैंने आपनी सहेली को फोन लगाया तो वो बडे गुस्से में थी। कारण पूछने पर उसने कहा कि वो अपनी 4 साल की बेटी से झुंझलाई हुई है। विस्तार में कुरेदने पर पता चला कि उसकी बिटिया अक्षरों की सही बनावट नहीं बना पा रही थी। उसकी इस बात से पिछले दिनों अखबार में पढा़ एक लेख मुझे याद आ गया। न्यूज़ीलैण्ड की एक यूनिवर्सिटी के शोध में ये पता लगा है कि प्रीस्कूल और नर्सरी के बच्चों में कलम की पकड़ और लिखावट के तरीके में कमी पायी गयी है और नतीज़तन बच्चे पेंसिल को ठीक से नहीं पकड़ पाते जिससे अक्षर सही नहीं बनते और लिखावट भी ख़राब बनती है। शोध के अनुसार इसका कारण है बच्चों में बढ़ता मोबाइल फोन और इसी प्रकार के उपकरणों का इस्तेमाल। आज कल के समय में फ़ोन एक ज़रूरत है जिससे माता पिता खुद को दूर नहीं रख पाते। तो ज़ाहिर है बच्चों में भी मोबाइल के प्रति रुझान बढ़ रहा है।
शायद ही कोई ऐसा परिवार जहाँ बच्चों के हाथों में मोबाइल न दिया जा रहा हो। आज कल लोरी से लेकर पढ़ाई तक और ज्ञान से लेकर मनोरंजन तक सब कुछ मोबाइल से ही जुड़ा है। बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र से मोबाइल दे दिया जाता है और उनकी नन्ही उँगलियाँ टच स्क्रीन पर बड़े आनंद से कौतुक करती हैं। अनगिनत एप्पस और विडिओ देख कर बच्चे सब सीख जाते हैं मोबाइल पे। रंग बिरंगी दुनिया में बच्चों के सीखने की की तमाम चीज़ें हैं। माता पिता भी बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं और खुश होते हैं कि कम उम्र से ही बच्चे काफी कुछ सीख गए है और बोलते भी हैं। मगर इस नए दौर में एक चीज़ छूट गयी और वो है फिजिकल कनेक्शन ....
बच्चा अल्फाबेट और काउंटिंग बोलता है मगर ये काफी नहीं है। एक बहुत महत्वपूर्ण चीज़ जो रह गयी वो है पेंसिल.... वो बचपन की स्लेट चॉक कही खो गयी। मोबाइल के आने से पढ़ाई मौखिक हो गयी.... लिखित नज़रअंदाज़ हो गया... बच्चा पहली बार प्रीस्कूल में पेंसिल पकड़ता है। दो साल तक परिपक्व हो जाने वाली पेनकिलग्रिप की शुरुआत ही देर से हो रही है तो बच्चा कब पेंसिल पकड़ना सेखेगा और कब लिखना। ऐसे में माता पिता और टीचर का लिखावट कर अक्षर की बनावट पर दवाब बच्चे के ऊपर एक्स्ट्रा प्रेशर की तरह काम करता है।
हम ये भूल गए की कहीं हमारे डिज़ाइनर घर की दीवारें न बिगड़ जाये इस डर से हमने बच्चो के हाथों में पेंसिल दी ही नहीं है।
पुनश्च : नन्हे बच्चों के माता पिता ज़रा गौर फरमाए... आपने किस उम्र में स्लेट चॉक पकड़ी थी और आपके बच्चे कब इस चीज़ का एक्सपोज़र पाते हैं। बच्चों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करें... कलम, चॉक , पेंसिल, कलर.... बच्चों को इन चीज़ों से जोड़ें... स्कूल भेजने से पहले बच्चों को लिखने का भी अभ्यास कराएं।
यदि आपके बच्चे लिखावट ठीक नहीं है या वो अक्षर सही नहीं बना रहा है तो उसे दाते नहीं संभव है उसकी मांशपेशियां कमज़ोर हैं और वो लिखने के लिए तैयार ही नहीं है। ऐसे हालत में न्यूज़ीलैण्ड यूनिवर्सिटी की शोध बच्चों के हाथों और कलाई की मांशपेशियों की फिजिकल थेरेपी पर ज़ोर देती है। अपने बच्चो की सहायता करें।
शायद ही कोई ऐसा परिवार जहाँ बच्चों के हाथों में मोबाइल न दिया जा रहा हो। आज कल लोरी से लेकर पढ़ाई तक और ज्ञान से लेकर मनोरंजन तक सब कुछ मोबाइल से ही जुड़ा है। बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र से मोबाइल दे दिया जाता है और उनकी नन्ही उँगलियाँ टच स्क्रीन पर बड़े आनंद से कौतुक करती हैं। अनगिनत एप्पस और विडिओ देख कर बच्चे सब सीख जाते हैं मोबाइल पे। रंग बिरंगी दुनिया में बच्चों के सीखने की की तमाम चीज़ें हैं। माता पिता भी बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं और खुश होते हैं कि कम उम्र से ही बच्चे काफी कुछ सीख गए है और बोलते भी हैं। मगर इस नए दौर में एक चीज़ छूट गयी और वो है फिजिकल कनेक्शन ....
बच्चा अल्फाबेट और काउंटिंग बोलता है मगर ये काफी नहीं है। एक बहुत महत्वपूर्ण चीज़ जो रह गयी वो है पेंसिल.... वो बचपन की स्लेट चॉक कही खो गयी। मोबाइल के आने से पढ़ाई मौखिक हो गयी.... लिखित नज़रअंदाज़ हो गया... बच्चा पहली बार प्रीस्कूल में पेंसिल पकड़ता है। दो साल तक परिपक्व हो जाने वाली पेनकिलग्रिप की शुरुआत ही देर से हो रही है तो बच्चा कब पेंसिल पकड़ना सेखेगा और कब लिखना। ऐसे में माता पिता और टीचर का लिखावट कर अक्षर की बनावट पर दवाब बच्चे के ऊपर एक्स्ट्रा प्रेशर की तरह काम करता है।
हम ये भूल गए की कहीं हमारे डिज़ाइनर घर की दीवारें न बिगड़ जाये इस डर से हमने बच्चो के हाथों में पेंसिल दी ही नहीं है।
पुनश्च : नन्हे बच्चों के माता पिता ज़रा गौर फरमाए... आपने किस उम्र में स्लेट चॉक पकड़ी थी और आपके बच्चे कब इस चीज़ का एक्सपोज़र पाते हैं। बच्चों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करें... कलम, चॉक , पेंसिल, कलर.... बच्चों को इन चीज़ों से जोड़ें... स्कूल भेजने से पहले बच्चों को लिखने का भी अभ्यास कराएं।
यदि आपके बच्चे लिखावट ठीक नहीं है या वो अक्षर सही नहीं बना रहा है तो उसे दाते नहीं संभव है उसकी मांशपेशियां कमज़ोर हैं और वो लिखने के लिए तैयार ही नहीं है। ऐसे हालत में न्यूज़ीलैण्ड यूनिवर्सिटी की शोध बच्चों के हाथों और कलाई की मांशपेशियों की फिजिकल थेरेपी पर ज़ोर देती है। अपने बच्चो की सहायता करें।




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