अलार्म तीसरी बार बजा और पति देव निंदियाए हुए शिकायती लहजे में बोले "जब उठना ही नहीं है तो अलार्म भरती ही क्यों हो तुम?" अब ये था मेरा असली अलार्म। सुबह उठना मुझे कतई नापसंद है।  दरअसल मैं उन लोगों में शुमार हूँ जो 8 घंटों की नींद के महत्व पर पूरा विश्वाश रखते हैं। मेरी सुबह रात के सुकून से नहीं कितने घंटे सोई इस हिसाब से होती यही और इसे के अनुसार मेरा सारा दिन बीतता है। मसलन अगर मेरी रात की नींद 7 घंटे 55 मिनट है तो मेरी सुबह अलसायी और सारा दिन थकान भरा होगा। नींद की कमी मेरे लिए एक आपातकालीन स्तिथि है। और रात की नींद इस लिए भी बहुत ज़रूरी है क्यूंकि मैं दिन भर एक भी झपकी नहीं लेती। मैं अब भी बिस्तर में पड़ी कल रात की नींद के घंटों का हिसाब ही कर रही थी कि  अलार्म फिर बज पड़ा....... मेरे पतिदेव अपना रोज़ का प्रवचन शुरू करते इससे पहले मैं उन्हें चुप  इशारा का के चुपके से बिस्तर से निकल आयी।  और इसी के साथ मैं उठ गयी थी...
अब क्या??? और ये अलार्म क्यों लगाया था मैंने....  आह! मत पूछिए.... ये मेरी सुबह के  वर्कआउट का अलार्म था जो गौरतलब है कि 4 बंद किया गया... हर बार 10 मिनट का स्नूज़ मतलब की मैं 40 मिनट देर से थी और अभी भी नींद से जूझ  रही थी। वही दूसरी ओर मेरे भीतर का विवेकानंद (मेरा महा ज्ञानी अंतर मन ...  जो मुझे हमेशा मेरे मन की करवाता है)  मेरे नींद के घंटे गिन  रहा था और उसका मेरे दिन पर होने वाले असर का अंदाज़ा लगा रहा था।  और इसी के साथ  मेरे भीतर के विवेकानंद ने अपना निर्णय दे दिया कि ":मैं रात भर ठीक से सोई ही नहीं  तो अब कैसे उठ सकती हूँ ... तो अब ये एक अलसायी सुबह है और ये दिन थकान भरा होगा तो अब वर्कआउट का तो सवाल ही पैदा नहीं होता"....  "बिंगो" ..... मैं जीत गयी
ये मेरी हर सुबह का ड्रामा है...अलार्म  लगाउंगी... बड़ी मुश्किल से ऑंखें खुलेंगी... और फिर खुद ही नींद न पूरी होने का बहाना कर के सो जाउंगी  और वर्कआउट की ....
उस वक़्त तो मैं कुछ सुकून महसूस करती हुँ मगर फिर मुझे अपने वर्कआउट को मिस करने का अफ़सोस होता है.... और इससे पहले की मैं अपनी ग्लानि के आगे समर्पण करूँ, मेरे भीतर का विवेकानंद जग उठता है। और  मुझसे कहता है... "मैं सारा दिन काम करती हूँ, बच्चों के पीछे भगति हूँ... इतना काफी नहीं है क्या ? मुझे वर्कआउट की क्या ज़रूरत है।" फिर बिंगो.. हा हा  मैं हर बार जीत ही जाती हूँ...
और फिर रात होती है, मैं सोने की तैयारी करती हूँ और खुद से वादा करती हूँ की आज जो हुआ वो कल नहीं होगा.. कल नयी सुबह.. नयी शुरुआत... वर्कआउट पक्का।  और मेरे भीतर के विवेकानंद मुझे आँख मार कर सो जाता  है...  आखिर उसे कल फिर मुझे बचाना है तो 8 घंटे की नींद तो ज़रूरी है।
पुनश्च : - मेरे पतिदेव कहते है की मुझे ये रोज़ का ड्रामा बंद करना चाहिए और मुझे एक पर्सनल ट्रेनर की ज़रूरत है।  मगर मेरे भीतर के विवेकानंद कहते है की... " कहाँ मिलेगा एक पर्सनल ट्रेनर"

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