आज एक एड में देखी ये लाइन ... सोचा कितनी सटीक है ये इस वक़्त मेरी जिंदगी के हालात के लिए ये। ये हालात हमेशा यूँ न थे। लगभग उम्र का आधा पड़ाव पार कर लिया मैंने और जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा इस घर में बीत गया। ये घर जो सालों पहले मेरा ससुराल बना और अब मेरी दुनिया है। इसी चौखट से पहली दफा इस घर में आयी थी मैं और बस यही की हो कर रह गयी। नाज़ुक हाथों में सासूमाँ ने घर की चाभियाँ थमा दिन और कमज़ोर कन्धों पर गृहस्ती की ज़िम्मेदारी। नयी डगर, अनजान सफर, मुश्किल रास्ते, बेपरवाह हमसफ़र। मेरे लिए ससुराल एक चरक्रव्युह था और मैं अभिमन्यु की तरह बस इसमें आ घुसी थी... इसे पार करने का तरीका और सलीका मुझे मालूम न था। बस हिम्मत थी और सास ससुर का मुझपर विश्वाश... कदम कई बार डगमगाए और कई बार रस्ते भटके मगर हर कदम नए मुकाम हासिल किये मैंने... दो छोटी ननदों की शादी, सास ससुर की लम्बी बीमारियां और फिर उनकी बिदाई, परिवार की पचड़े, अपने बच्चे और उनकी परवरिश, पति के साथ धुप छाँव का सफर... सब मील के पत्थर थे मेरी रहगुज़र के.... मैं चलती रही और वक़्त पंख लगा कर उड़ गया... अब तो आइना भी कहता है मेरे सफर के फ़साने.. और दीवार पर लगी तस्वीरें बताती है मेरे तजुर्बों के किस्से...जिंदगी ने जितने होम वर्क दिए मैं करती चली गयी.. न छुट्टी न मस्ती... बस जिंदगी के सबक पढ़ती चली गयी। उम्र के दो दशक परिवार को सँभालते सँभालते बीत गए... और अब जीवन की साँझ की ओर बढ़ चली हूँ मैं... सब अपनी जिंदगी में रम गए... बच्चों की अपनी दुनिया है जहाँ माँ की ज़रूरत कम पड़ती है... सास ससुर अब्राहे नहीं... सरे नाते रिश्तेदार अपनी खुशियों में व्यस्त हैं... पति तब भी बेपरवाह और अब भी बेपरवाह... घर भी संभल गया और घरवाले भी... अब न कोई मसरुफी है न जिम्मेदारियों की फेहरिस्त। कुछ खाली सी हो गयी है अब जिंदगी... शायद अब कोई नया सबक देने को बाकि ही नहीं रहा। सब हो गया... It's all taken care of.....
तो अब क्या करूँ ????????? बेकारी की आदत नहीं है मुझे... इसलिए अब भी सफर करती हूँ मैं अपने कल और आज में.... अपने हासिल-ए -सफर पर नाज़ तो होता है मगर कुछ अफ़सोस सा भी है हरसूँ... अफ़सोस खुद को खोने का... वो नाज़ुक हाथ और कमज़ोर कन्धों वाली मैँ .... कहीं धूमिल सी दिखती हूँ तस्वीरों में। इसीलिए आज ये एड देख कर लगा अब तो सब हो गया कुछ भी नहीं बचा... बस मैं रह गयी हूँ... तो क्यों न अब खुद को सम्भालूं।
पुनश्च : - सिर्फ घर, परिवार, बच्चों की जिम्मेदारियां पूरी कर लेना तो आपकी ज़िन्दगी का सबब नहीं था ना...उम्र की साँझ में जब गया... it's all taken care of.. तो अब वक़त है खुद की ख़ुशी ढूंढने का... अपने लिए कुछ करने का। इस वक़्त को बेकारी बिताएं। वो करें जो घर और बच्चों की भागम सका...खुद तो संवारें और तब जा कर सकेंगी.... it's all taken care of.. आखिर सब में आप भी तो हैं..... निर्वाण तभी मुकम्मल होगा...
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