आज घर के दो सदस्य बीमार हैं... इस मौसम में बड़ी तेज़ी से फैलने वाला वाइरल बुखार... एक का बुखार चढ़ता है तो दूसरे का उतरता है... एक को कंबल ओढ़ाओ तो दूसरे के माथे पर बर्फ की पट्टी धरो... इस कमरे से उस कमरे दौड़ दौड़ कर मैं थक गयी हूँ.... इस तीमारदारी की भागम भाग में मैं ये तो भूल ही गयी कि मेरा बुख़ार बढ़ता जा रहा है। मैं इस कम्बख्त वायरल बुखार की पहली शिकार थी, अभी ठीक से मेरी और वायरल की भिड़ंत शुरू भी नहीं हो पाई थी की वायरल ने मेरे सारे परिवार को लपेटे में ले लिया। और एक प्रतिबद्ध सेनापति की तरह मैंने वायरल बुखार से अपनी निजी लड़ाई छोड़ कर अपने परिवार के पक्ष में आ खड़ी हुयी और यहीं से शुरू हुआ तीमारदारी का खेल। ये दवाईयां भी न बड़े जोड़ तोड़ में हैं... बुखार और खांसी की दवा में नींद का असर है..... अब जब सोने से बैर है तो ये दवा कैसे लूँ... जो सो गयी तो घरवालों को कौन देखेगा .... इसी से मैंने अपनी दवाइयां बंद कर दी और काम पर लग गयी..... नतीज़तन मेरा बुखार और खांसी बढ़ रहा था.... मगर औरत की सहनशक्ति की परीक्षा थी... कैसे हार जाती भला.... लड़ती गयी....
सोचने से समझ नहीं आता कैसे भूल जाती हूँ मैं खुद को... एक पल जो लाचार थी, किसी अपने की तकलीफ में उठ खड़ी होती हूँ। जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो... सब की तरह मेरा भी जी चाहता है थोड़ी सेवा, थोड़ा दुलार।
मुझे भी लगता है कोई मेरे नखरे उठाये और दर्द में सहलाये... लगी तो रहती हूँ देखभाल दवा दारु में पर थोड़ी जलन भी होती है... काश मेरे लिए भी कोई इतना करता... सोचती हूँ अगली बार पक्का मैं भी यूँ ही लाचारी दिखाउंगी... मगर जानती हूँ ये न हो सकेगा मुझसे... बस बड़ा मन होता है मेरा भी यूँ तुम लोगों की तरह बीमार पड़ने का...
पुनश्च :- बच्चो और घर वालों की बीमारी में खुद को भुला कर सबकी सेवा करने वाली वो हर माँ... बहन... भाभी... बीवी... के दिल से पूछिए... वो भी तो कुछ चाहती है ... ज़रा सोचिये...
CARE FOR HER
सोचने से समझ नहीं आता कैसे भूल जाती हूँ मैं खुद को... एक पल जो लाचार थी, किसी अपने की तकलीफ में उठ खड़ी होती हूँ। जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो... सब की तरह मेरा भी जी चाहता है थोड़ी सेवा, थोड़ा दुलार।
मुझे भी लगता है कोई मेरे नखरे उठाये और दर्द में सहलाये... लगी तो रहती हूँ देखभाल दवा दारु में पर थोड़ी जलन भी होती है... काश मेरे लिए भी कोई इतना करता... सोचती हूँ अगली बार पक्का मैं भी यूँ ही लाचारी दिखाउंगी... मगर जानती हूँ ये न हो सकेगा मुझसे... बस बड़ा मन होता है मेरा भी यूँ तुम लोगों की तरह बीमार पड़ने का...
पुनश्च :- बच्चो और घर वालों की बीमारी में खुद को भुला कर सबकी सेवा करने वाली वो हर माँ... बहन... भाभी... बीवी... के दिल से पूछिए... वो भी तो कुछ चाहती है ... ज़रा सोचिये...
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