छत्रपति शिवाजी के समय में नियम होता था कि सायं सात बजे के बाद किले के दरवाजे बंद हो जाते थे । फिर अंदर कोई नहीं आ सकता था । किले में रहने वाली एक मां एक दिन खेत में गई, उसे लौटने में देर हो गई, बाद में आई तो देखा कि दरवाजा बंद था ।
उसने दरबान से प्रार्थना की कि घर में उसका एक साल का छोटा बच्चा है, दरवाजा खोल दिया जाए । पर दरबान ने कहा, यह नियम हम तोड़ नहीं सकते । मां उन्हें निवेदन करती रही लेकिन उन्होंने दरवाजा नहीं खोला ।
( उसे अपना छोटा बच्चा भूख से तड़पते हुए, आंखों के सामने रोता हुआ नजर आ रहा था । ) वह किले के पीछे गई और दीवार चढ़ना प्रारंभ किया । उसके हाथ और पांव छिला गए, तकलीफ बहुत हुई उसको परंतु किले को पार कर बेटे के पास पहुंच गई ।
शिवाजी महाराज के पास यह समाचार पहुंचा । उन्होंने उस महिला को बुलवाया और उससे कहा, तुझे राजदंड से डर नही लगा । मां ने कहा, मैं अपने बच्चे के प्यार में किले पर चढ़ गई । मेरा बच्चा भुखा था, मुझे कैसे भी अपने बच्चे तक पहुंचना था । इसका क्या परिणाम होगा यह मैंने नहीं सोचा । शिवाजी महाराज उसकी इस निडरता को देखकर उससे बहुत ही प्रभावित हुए । वैसे भी शिवाजी महाराज मां की बहुत इज्जत करते थे । उन्होंने उसे ससम्मान वापस भेज दिया ।
हमें भी उस मां के समान निर्भय होना चाहिए क्योंकि भयभीत जीवन जीने से कई प्रकार से नुकसान होते हैं ।
एक, भय हमारी हिम्मत को तोड़ देता और हम सहमे-सहमे रहते हैं ।
दो, भय से आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता है और हमारी आंतरिक शक्तियों का ह्रास होता है ।
तीन, भय के कारण हमारी कार्य क्षमता घट जाती है । हमारे रोजाना के कार्य भी बिगड़ते हैं और हम कोई नया कार्य भी नहीं कर पाते अर्थात हमारी रचनात्मक प्रवृत्ति खत्म हो जाती है ।
चार, भय के कारण हमारे समय, संकल्प, श्वास व्यर्थ जाते हैं ।
पांच, भय के कारण हम सत्य होते हुए भी कमजोर पड़ जाते है ।
fight fear... live brave... live healthy
we can help
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( उसे अपना छोटा बच्चा भूख से तड़पते हुए, आंखों के सामने रोता हुआ नजर आ रहा था । ) वह किले के पीछे गई और दीवार चढ़ना प्रारंभ किया । उसके हाथ और पांव छिला गए, तकलीफ बहुत हुई उसको परंतु किले को पार कर बेटे के पास पहुंच गई ।
शिवाजी महाराज के पास यह समाचार पहुंचा । उन्होंने उस महिला को बुलवाया और उससे कहा, तुझे राजदंड से डर नही लगा । मां ने कहा, मैं अपने बच्चे के प्यार में किले पर चढ़ गई । मेरा बच्चा भुखा था, मुझे कैसे भी अपने बच्चे तक पहुंचना था । इसका क्या परिणाम होगा यह मैंने नहीं सोचा । शिवाजी महाराज उसकी इस निडरता को देखकर उससे बहुत ही प्रभावित हुए । वैसे भी शिवाजी महाराज मां की बहुत इज्जत करते थे । उन्होंने उसे ससम्मान वापस भेज दिया ।
हमें भी उस मां के समान निर्भय होना चाहिए क्योंकि भयभीत जीवन जीने से कई प्रकार से नुकसान होते हैं ।
एक, भय हमारी हिम्मत को तोड़ देता और हम सहमे-सहमे रहते हैं ।
दो, भय से आत्मविश्वास कमजोर पड़ जाता है और हमारी आंतरिक शक्तियों का ह्रास होता है ।तीन, भय के कारण हमारी कार्य क्षमता घट जाती है । हमारे रोजाना के कार्य भी बिगड़ते हैं और हम कोई नया कार्य भी नहीं कर पाते अर्थात हमारी रचनात्मक प्रवृत्ति खत्म हो जाती है ।
चार, भय के कारण हमारे समय, संकल्प, श्वास व्यर्थ जाते हैं ।
पांच, भय के कारण हम सत्य होते हुए भी कमजोर पड़ जाते है ।
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