कमबख़्त जहाँ से देखूँ उतनी ही लज़्ज़ीज़ नज़र आती है। कसूर इसी का है जाने क्यों इतना दिल लुभाती है। उफ्फ! टेबल पर रखी ये आइसक्रीम मुझे इतना ललचा रही है कि मैं इसकी ओर खींची चली जा रही हूँ। जैसे तैसे खुद पर काबू किया और अपनी नज़रें फेरी ही थी कि मिसेस कटियाल आइसक्रीम की ट्रे उठाये मेरी तरफ चली आ रही थीं .... "अरे सुनैना लो न, तुम्हारी फेवरेट आइसक्रीम है।" अब बेचारी सुनैना करती....  उँगलियाँ बेताब थी लपक कर वो कांच की कटोरी उठाने को, दिल तो स्वाद के चटखारे ले रहा था मगर दिमाग ने जुबां पे कब्ज़ा कर लिया और मैं जाने कैसे बोल पड़ी... "नहीं मैं डाइटिंग पर हूँ" ....  "ओह हाँ रे... मैं तेरी इतनी मेहनत ख़राब नहीं करुँगी... आई अंडरस्टैंड !".... मिसेस कटियाल ने एक अच्छे दोस्त की तरह मेरी बात का मान रखा... मगर उफ्फ  ये दिल और ये आइसक्रीम!!!!!
जो जो वो ट्रे मुझसे दूर जा रही थी मेरा दिल मायूस हो रहा था और दिमाग अपनी जीत की ख़ुशी माना रहा था।
ऐसी पार्टी किस काम की... सलाद तो मैं घर पर भी खा ही लेती हूँ... अब इतना तैयार हो कर आयी थी.... मेरी सहेली दामिनी (मिसेस कटियाल) की पचीसवीं सालगिरह थी, एक आइसक्रीम तो बनती थी। बड़ी होशियारी से मेरे दिल ने मेरे दिमाग को माना लिया था और मैं धीमे धीमे आइसक्रीम काउंटर की ओर बढ़ ही रही थी कि रेणुका ने रोक लिया "अरे वाह सुनैना, तूने तो बड़ा वेट लूज़ कर लिया, वाह यार तू बड़े पक्के इरादे की है... बस डाइटिंग से ही मेन्टेन कर लिया" ....  लो बढ़ गया मेरे दिमाग का भाव इतनी तारीफ सुन कर.... लो दिल फिर दिल छोटा कर के आइसक्रीम के चटकारे भूलने में लग गया।  रेणुका की चटपटी बातों में मशगूल ही हो रही थी की पास के टेबल से सुगंधा ने आवाज़ दी। अपने छोटे बेटे को बड़े प्यार से आइसक्रीम खिला रही सुगंधा हमारी मित्र मंडली  की नयी सदस्य थी। जितने चाव से उसका पांच साल का बेटा आइसक्रीम खा रहा था उतनी ही रफ्तार से मेरे दिल के चटखारे तेज़ हो रहे थे।
मैंने सोचा की इससे पहले की इन चटखारों की आवाज़ महफ़िल तक पहुंचे मेरे दिल को एक प्याली आइसक्रीम का जयका दे दिया जाना चाहिए।  बस इसी ख्याल से मैं सब सहेलियों से विदा ले कर सुमित को खोजने के बहाने से मित्र मंडली से दूर चल पड़ी.... आइसक्रीम के स्टाल की तरफ।  अभी कुछ ही कदम लिए होंगे की सुमित न जाने कहाँ से प्रकट हो गए... "अब चलें?" मैं कुछ कह पाती इससे पहले ही सहेलियों ने मेरे दिल से सुमित के दिल का कनेक्शन जोड़ दिया और ठहाकों के रेल लग गए..."लो सुनैना ने याद किया और सुमित आ भी गए"
मैं शर्माती मुस्काती से झेंप गयी। अब कैसे कहती की दिल का कनेक्शन तो आइसक्रीम से था। कहने को कुछ था भी नहीं क्यूंकि सुमित बड़ी फुर्ती से सबसे विदा ले कर मुझे बाँहों में भरे हुए पार्टी से निकलने लगे।  दिल को तो अब भी आइसक्रीम की तलब थी मगर दिमाग अपनी सफलता पर इतरा रहा था... महफ़िल से रुक्सत हो चले थे हम बस चंद कदम ही दूर थे दरवाज़े से की मिसेस कटियाल... मेरी दामिनी कटियाल.... ने रोक कर बड़ी अदब से पूछा खाना "खाना खाया न आप लोगों ने" सुमित और मैंने हाँ में सर हिला दिया।  फिर दामिनी ने पूछा... "मीठा, आइसक्रीम?" कसम से इतना प्यार आया दामिनी पे, जी चाहा उसे गले लगा लूँ... कहना ही शुरू किया था की सुमित बोल पड़े "हाँ  जी, सुनैना तो डाइटिंग पे है इसे तो खानी नहीं है आइसक्रीम तो मैंने ही 2 कप खा ली" हंसी ठहाके गूंज उठे और मेंफिर झेंप गयी... कसम से सुमित पर इतना गुस्सा आया की जी चाहा किलगा दबा  दूँ।
अब हम आखरी अलविदा कह कर गाड़ी की और बढ़ चले।  सारे रास्ते सुमित पार्टी और खाने की तारीफ करते रहे और मैं गुस्से में बैठी रही... "दो आइसक्रीम खा कर कितने खुश हैं, मेरे हिस्से की भी खा ली.... ये भी नहीं की किसी आइसक्रीम पार्लर पे मुझे भी आइसक्रीम दिला दे... "
यूँ ही जलते भुंजते घर आ पहुंचे हम और मैं नाराज़गी जाहिर करते हुए घर के भीतर आ गयी... सुमित दौड़ते हुए पीछे आये... "क्या हुआ, क्यों नाराज़ हो?"
लाख पूछा उन्होंने ..पर क्या कहती... गुस्सा तो मैं उस आइसक्रीम से थी... कम्ब्खत  इतनी लज़ीज़ क्यों है???
पुनश्च :- डाइट पर काबू करना वज़न काम करने की पहली सीढ़ी है....
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