वो झल्ली
उदिता को सब झल्ली कहा करते थे। बेफिक्री उसकी अदा थी। उसे आईने से प्यार न था और न ही वो खुद को निहारा करती। बल्कि किसी किसी रोज़ तो सारा दिन बीत जाता और उसे मालूम ही न होता की वो कैसी दिख रही है। ऐसा नहीं की उदिता को सजने सँवरने या खूबसूरत दिखने से गुरेज़ था। उसके भी वो निजी लम्हे थे जब वो एक लट संवारती, किसी साड़ी में खुद को देर तक निहारती, एक एक ज़ेवर से परवान चढ़ते श्रृंगार पर इठलाती, खुले बालों के रेश्मी अहसासों में खो जाती। बस दिल न रमता उसका श्रृंगार में। यूँ न था की रोज़ खुद को गुड़िया सा सजा कर आईने से बातें करे। उदिता बड़ी निर्मोही सी थी... मन अच्छा होता तो बिना किसी अवसर के भी सुसज्जित रहती और मन न हो तो तीज त्यौहार भी फीके निकाल दे। मन के प्रतिरूप में खुद को देखने दिखने वाली उदिता अक्सर अपनी इस प्रकृति से लोगों को झल्ली ही समझ आती। और उसे भी ये नाम जमता था.. क्यूंकि इस परिचय के बाद किसी को भी उम्मीद न रहती कि उदिता कभी अवसर अनुसार तैयार मिलेगी। पति मल्हार भी उदिता को उसके झल्ली स्वाभाव से ही जानते और सास अनुप्रिया भी अब उदिता के अंदाज़ की आदतन हो गयी थी। प्रेम विवाह के बाद भी मल्हार उतने रोमांटिक नहीं थे... वे तो शायद उदिता को ठीक से देखते भी नहीं थे... लेकिन ये उदिता की बेफिक्री का कारण नहीं था.. भला उदिता अपने झल्लीपन का ठीकरा मल्हार के सर नहीं मढ़ना चाहती थी। उदिता की सास अनुप्रिया बड़ी सफाई पसंद थीं और उन्हें बेवजह नए अच्छे कपड़ों को घर में घसीटना हरगिज़ नापसंद था, घर के कामों में कपडे ख़राब हो जाते हैं। सो तीज़ त्योहारों पर उदिता सजने से परहेज़ ही करती.. क्यूंकि सारे काम, पूजा की तयारी और फिर खाना... वक़्त ही कहाँ मिला जब हाथ खाली हों। मगर ये उदिता की झल्ली अदा का कारण नहीं था... आखिर सासुमाँ तो बस ये चाहतीं थीं कि उदिता की कीमती साड़ियाँ खराब न हों। उदिता की ननद पल्लवी कुछ नवाबी मिजाज़ की हैं और बड़ी ही मददगार भी। कहीं भी जाना हो या कोई भी मौका हो उन्होंने हमेशा उदिता की तैयार होने में मदद की। यहाँ तक कि पल्लवी खुद अपने हाथों से उदिता को सजाती। बस हर बात उनकी ही पसंद की होती। मगर इस बात से भी उदिता का झल्ली होना जायज़ नहीं होता आखिर पल्लवी तो बस उदिता को अच्छी पसंद के मायने बताया करती थी।
सब कहते हैं उदिता शुरु से ही ऐसी है। नाजाने ये "सब" लोग उदिता को कितना जानते थे। सच है कि उदिता कुछ बेफिक्र.. कुछ बेपरवाह सी थी मगर उसके भी कुछ श़ौक तो थे। उसका भी मन था... मगर फिर भी न जाने क्यों उदिता भी खुद को झल्ली मान चुकी थी।
पुनश्चः :- उदिता को झल्ली कहा जाना सबके हक में है। परिवार वाले उसे दोशी करार कर सकते थे और खुद उदिता हर वक्त perfect and presentable बने रहने से बची रहती। मगर आखिर उदिता ऐसी क्यों है...पाठकों को समझ आए तो ज़रूर बताएं। और अपने अास पास किसी को भी उदिता बनने से रोकें।
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सब कहते हैं उदिता शुरु से ही ऐसी है। नाजाने ये "सब" लोग उदिता को कितना जानते थे। सच है कि उदिता कुछ बेफिक्र.. कुछ बेपरवाह सी थी मगर उसके भी कुछ श़ौक तो थे। उसका भी मन था... मगर फिर भी न जाने क्यों उदिता भी खुद को झल्ली मान चुकी थी।
पुनश्चः :- उदिता को झल्ली कहा जाना सबके हक में है। परिवार वाले उसे दोशी करार कर सकते थे और खुद उदिता हर वक्त perfect and presentable बने रहने से बची रहती। मगर आखिर उदिता ऐसी क्यों है...पाठकों को समझ आए तो ज़रूर बताएं। और अपने अास पास किसी को भी उदिता बनने से रोकें।
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