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Showing posts from June, 2018
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मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ ! विल्मा रुडोल्फ का जन्म टेनिसी के एक गरीब परिवार में हुआ था. चार साल की उम्र में उन्हें लाल बुखार के साथ डबल निमोनिया हो गया , जिस वजह से वह पोलियो से ग्रसित हो गयीं. उन्हें पैरों में ब्रेस पहनने पड़ते थे और डॉक्टरों के अनुसार अब वो कभी भी चल नहीं सकती थीं.लेकिन उनकी माँ हमेशा उनको प्रोत्साहित करती रहतीं और कहती कि भगवान् की दी हुई योग्यता ,दृढ़ता और विश्वास से वो कुछ भी कर सकती हैं. विल्मा बोलीं , ” मैं इस दुनिया कि सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनना चाहती हूँ .”  डॉक्टरों की सलाह के विरूद्ध 9 साल की उम्र में उन्होंने ने अपने ब्रेस उतार फेंकें और अपना पहला कदम आगे बढाया जिसे डोक्टरों ने ही नामुमकिन बताया था . 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रेस में हिस्सा लिया और बहुत बड़े अन्तर से आखिरी स्थान पर आयीं. और उसके बाद वे अपनी दूसरी, तीसरी, और चौथी रेस में दौड़ीं और आखिरी आती रहीं , पर उन्होंने हार नहीं मानी वो दौड़ती रहीं और फिर एक दिन ऐसा आया कि वो रेस में फर्स्ट आ गयीं.  15  साल की उम्र में उन्होंने टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी में द...

Kamarband

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आज एक SUCCESS STORY . एक ऐसी कहानी जो प्रेरणात्मक भी है और अविश्वश्नीय भी। कहानी है एक साधारण से परिवार की साधारण सी लड़की पर्णिका की जो एक असाधारण सी परिस्तिथि से बड़े ही साधारण से तरीके से खुद को निकाल लाती है। तो बात यहाँ से शुरू होती है कि "शौक़  बड़ी चीज़ है" पर्णिका को गहनों का बड़ा शौक़ था। हर बार जब वो माँ के गहने पहन कर खुद को शीशे में निहारती तो माँ यही कहतीं कि, राम करे तेरी सास तुझे गहनों से लाद दे। भगवान् ने भी शायद माँ की ये बाद हिफाजत से दर्ज़ कर ली थी और वक़्त आने पर पर्णिका को बड़ी ही संपन्न ससुराल मिली और जैसा माँ चाहती थी पर्णिका की सास ने उसे एक से एक नायाब गहनों से लाद दिया। माथे के मांगटीके से पैवरों की पाज़ेव तक हर जे़वर.. कितने ही डिजाइन और सेटस। पर्णिका की खुशी का तो ठिकाना न था..... वो हर अवसर पर रज के तैयार होती और अपने ज़ेवरों पर खूब इठलाती। बस एक ही अफसोस था कि सासुमाँ ने पर्णिका को कमरबंद नहीं दिया था। उसने कई बार हल्के शिकायती लहजे़ में सासिमाँ मे कहा भी मगर वो हर बार मुसकुरा कर सर हीला देतीं। समय अपनी चाल से चलता रहा और पर्णिका की ज...
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 जिन्दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है और क्या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूँ हर चीज़ या बदलाव की शुरुआत बहुत ही basic ढंग से होती है | कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है | चलिए एक कहानी पढ़ते है इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्वपूर्ण है |                     एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था | आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था | वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी | एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची |                      वो लड़का महिला के पास ग...
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कहानियां तो कई लिखीं मैंने...कुछ अपनी, कुछ औरों की। बस मसला हर बार हेल्थी माँ का था। मगर आज एक ऐसा अनुभव लिख रही हूँ जो दिल दिमाग को झंकझोर देगा।  आज क्लिनिक पर एक औरत आयी... एक अजीब सी मायूसी थी उसकी आँखों में। सच, जी चाहा था उसकी कहानी जानने का, मगर मैंने अपने लेखक मन को चुप करवाया और डॉक्टरी दिमाग को अपना काम करने दिया।  बस मुझे ये नहीं पता था की ये मसला दिमाग का नहीं दिल का था और मेरे दिल को यूँ छू जायेगा कि आज तो कलम रुक न सकेगी। खैर! कहानी को आगे बढाती हूँ.... केबिन में घुसते ही नैना ने बड़ी फुर्तीली निगाह से पूरे कमरे को निहारा, जैसे कोई मुआयना कर रही हो।  फिर कुछ सकुचाते हुए बैठी और मुझे देखने लगी। एक खालीपन था उसकी आँखों में जिसमें से मायूसी आंसू बन कर यदा कदा  झांकती थी। काफी देर वो खामोश बैठी रही... मैं बस उसे निहारती रही की शायद उसकी ऑंखें वो कहे जो मैं जानना चाहती हूँ। मगर न वो बोली न उसकी आँखें वरन वो मेरे कुछ कहने का इंतज़ार कर रही थी। संजीदा हो कर मैंने उसे पूछा "कहिए, क्या परेशानी है।" मैं भी कुछ गहरा जानना चाहती थी और वो भी बस जवाब से कुछ ...
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कमबख़्त जहाँ से देखूँ उतनी ही लज़्ज़ीज़ नज़र आती है। कसूर इसी का है जाने क्यों इतना दिल लुभाती है। उफ्फ! टेबल पर रखी ये आइसक्रीम मुझे इतना ललचा रही है कि मैं इसकी ओर खींची चली जा रही हूँ। जैसे तैसे खुद पर काबू किया और अपनी नज़रें फेरी ही थी कि मिसेस कटियाल आइसक्रीम की ट्रे उठाये मेरी तरफ चली आ रही थीं .... "अरे सुनैना लो न, तुम्हारी फेवरेट आइसक्रीम है।" अब बेचारी सुनैना करती....  उँगलियाँ बेताब थी लपक कर वो कांच की कटोरी उठाने को, दिल तो स्वाद के चटखारे ले रहा था मगर दिमाग ने जुबां पे कब्ज़ा कर लिया और मैं जाने कैसे बोल पड़ी... "नहीं मैं डाइटिंग पर हूँ" ....  "ओह हाँ रे... मैं तेरी इतनी मेहनत ख़राब नहीं करुँगी... आई अंडरस्टैंड !".... मिसेस कटियाल ने एक अच्छे दोस्त की तरह मेरी बात का मान रखा... मगर उफ्फ  ये दिल और ये आइसक्रीम!!!!! जो जो वो ट्रे मुझसे दूर जा रही थी मेरा दिल मायूस हो रहा था और दिमाग अपनी जीत की ख़ुशी माना रहा था। ऐसी पार्टी किस काम की... सलाद तो मैं घर पर भी खा ही लेती हूँ... अब इतना तैयार हो कर आयी थी.... मेरी सहे...
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There is a motive behind every murder.  हर क़तल के पीछे कोई मकसद होता है।  और अब जो क़तल मैं करने वाली हूँ उसके पीछे भी एक मकसद है। घबराएं नहीं एक कोई मर्डर मिस्ट्री नहीं है बल्कि एक मोटिवेशनल स्टोरी है।  तो बात हो रही थी क़तल की... मेरा शिकार है मेरी आज की पर्सनालिटी... 78 किलो के भारी भरकम  शरीर वाली मैं। जी हाँ मैं जैसी आज दिखती हूँ मैं उस उसे मरना चाहती हूँ। कानूनन खुद को मारना खुदखुशी कहलाता है मगर मेरी नज़र से मेरा ये  कदम क़तल ही है।  और इस क़तल के पीछे का मकसद है खुदखुशी।  यानी खुद की ख़ुशी। जमीन पर बैठ कर उठ न पाना, बिस्तर पे करवट बदलन जैसे बड़ा भरी काम लगना, सीढ़ी चढ़ना पहाड़ चढ़ने जैसा लगना, कपड़ों से झांकते थुलथुलेपन से हिचकिचाना, सोच कर ढीले कपडे चुनना, लोगों की नज़रों से वाकिफ हो कर खुद को सांस रोक कर सिकोड़ना, यदा कदा टिप्पणियों और मज़ाक से झेंपना, शीशे से कतराना। ये सब बड़ा तकलीफदेह है। इन सब हालातों का बोझ कभी कभी अपने वज़न से ज्यादा लगता है।  इस सब से कूद को छुटकारा दिलाने और खुद को खुश करने के मकसद ने ही मुझे इस क़तल के लि...