Posts

Showing posts from March, 2018
Image
"उफ्फ्फ! तुमसे तो बोलना ही फ़िज़ूल है।  जब देखो लड़ने को तैयार रहती हो... कोई बात समझनी ही नहीं है बस सीधा लड़ाई का रास्ता आता है तुम्हे..." गुस्से में बड़बड़ाते हुए अधिराज कमरे से और फिर घर से बहार निकल गए... घर की ख़ामोशी में अकेली रह गयी मानसी सोचने लगी.... क्या मैं सच में लड़ रही थी...? मगर कुछ तो सच भी है... औरतें सारी जिंदगी लड़ती ही रहतीं हैं। माँ बाप से प्यार के लिए, स्कूल कालेज में सम्मान के लिए, पति से अधिकार के लिए, ससुराल मे अपनेपन के लिए, बच्चों से उनके ही भले के लिए, वक्त से राहत के लिए, उम्र से चाहत के लिए, खुद से मोहब्बत के लिए, ज़माने से समाज से रूढीवादी परमपराओ के बधंन से आजाद होने के लिए.... मानसी ख्यालों के दलदल में गहरी उतर रही थी... इस हर पल की लड़ाई का हासिल क्या था उसके हाथों में ? उसकी कद्र किसे थी.. सोच का सफर खुद से दूर चला तो उसे लगा यही हाल तो हर औरत का है... माँ, भाभी... सभी अपने आप को घर परिवार बच्चों, पति पर निश्छल  भाव से वार देते है मगर उसके बदले हमारी ज़रूरतों और भावनाओं का ख्याल कोई नहीं रखता... औरत चाहे हाउसवाइफ हो या नौकरीपेशा.. घर की जिम्मेदार...
Image
आज घर के दो सदस्य बीमार हैं... इस मौसम में बड़ी तेज़ी से फैलने वाला वाइरल बुखार... एक का बुखार चढ़ता है तो दूसरे का उतरता है... एक को कंबल ओढ़ाओ तो दूसरे के माथे पर बर्फ की पट्टी धरो... इस कमरे से उस कमरे दौड़ दौड़ कर मैं थक गयी हूँ.... इस तीमारदारी की भागम भाग में मैं ये तो भूल ही गयी कि मेरा बुख़ार  बढ़ता जा रहा है।  मैं इस कम्बख्त वायरल बुखार की पहली शिकार थी, अभी ठीक से मेरी और वायरल की भिड़ंत शुरू भी नहीं हो पाई  थी की वायरल ने मेरे सारे परिवार को लपेटे में ले लिया।  और एक प्रतिबद्ध सेनापति की तरह मैंने वायरल बुखार से अपनी निजी लड़ाई छोड़ कर अपने परिवार के पक्ष में आ खड़ी हुयी और यहीं से शुरू हुआ तीमारदारी का खेल।  ये दवाईयां भी न बड़े जोड़ तोड़ में हैं... बुखार और खांसी की दवा में नींद का असर है..... अब जब सोने से बैर है तो ये दवा कैसे लूँ...  जो सो गयी तो घरवालों को कौन देखेगा .... इसी से मैंने अपनी दवाइयां बंद कर दी और काम पर लग गयी..... नतीज़तन मेरा बुखार और खांसी बढ़ रहा था.... मगर औरत की सहनशक्ति की परीक्षा थी... कैसे हार जाती भला.....
Image
 किसी शहर के रेलवे स्टेशन पर एक भिखारी रहता था। वह वहां आने जाने वाली रेलगाड़ियों में बैठे यात्रियों से भीख मांग कर अपना पेट भरता था। एक दिन जब वह भीख मांग रहा था तो सूट बूट पहने एक लम्बा सा व्यक्ति उसे दिखा। उसने सोचा कि यह व्यक्ति बहुत अमीर लगता है, इससे भीख मांगने पर यह मुझे जरूर अच्छे पैसे देगा। वह उस लम्बे व्यक्ति से भीख मांगने लगा। भिखारी को देखकर उस लम्बे व्यक्ति ने कहा, “तुम हमेशा मांगते ही हो, क्या कभी किसी को कुछ देते भी हो?” भिखारी बोला, “साहब मैं तो भिखारी हूँ। हमेशा लोगों से मांगता ही रहता हूँ। मेरी इतनी औकात कहाँ कि किसी को कुछ दे सकूँ।” लम्बा व्यक्ति बोला, “जब किसी को कुछ दे नहीं सकते तो तुम्हें मांगने का भी कोई हक़ नहीं है। मैं एक व्यापारी  हूँ और लेन-देन में ही विश्वास करता हूँ। अगर तुम्हारे पास मुझे कुछ देने को हो तभी मैं तुम्हे बदले में कुछ दे सकता हूँ।” तभी वह स्टेशन आ गया जहाँ पर उस लंबे व्यक्ति को उतरना था। वह ट्रेन से उतरा और चला गया। इधर भिखारी उसकी कही गई बात के बारे में सोचने लगा। उस लंबे व्यक्ति के द्वारा कही गयीं बात उस भिखारी के दिल में उतर ...
Image
अलार्म तीसरी बार बजा और पति देव निंदियाए हुए शिकायती लहजे में बोले "जब उठना ही नहीं है तो अलार्म भरती ही क्यों हो तुम?" अब ये था मेरा असली अलार्म। सुबह उठना मुझे कतई नापसंद है।  दरअसल मैं उन लोगों में शुमार हूँ जो 8 घंटों की नींद के महत्व पर पूरा विश्वाश रखते हैं। मेरी सुबह रात के सुकून से नहीं कितने घंटे सोई इस हिसाब से होती यही और इसे के अनुसार मेरा सारा दिन बीतता है। मसलन अगर मेरी रात की नींद 7 घंटे 55 मिनट है तो मेरी सुबह अलसायी और सारा दिन थकान भरा होगा। नींद की कमी मेरे लिए एक आपातकालीन स्तिथि है। और रात की नींद इस लिए भी बहुत ज़रूरी है क्यूंकि मैं दिन भर एक भी झपकी नहीं लेती। मैं अब भी बिस्तर में पड़ी कल रात की नींद के घंटों का हिसाब ही कर रही थी कि  अलार्म फिर बज पड़ा....... मेरे पतिदेव अपना रोज़ का प्रवचन शुरू करते इससे पहले मैं उन्हें चुप  इशारा का के चुपके से बिस्तर से निकल आयी।  और इसी के साथ मैं उठ गयी थी... अब क्या??? और ये अलार्म क्यों लगाया था मैंने....  आह! मत पूछिए.... ये मेरी सुबह के  वर्कआउट का अलार्म था जो ...
Image
आज एक एड में देखी ये लाइन ... सोचा कितनी सटीक है ये इस वक़्त मेरी जिंदगी के हालात के लिए ये। ये हालात हमेशा यूँ न थे।  लगभग उम्र का आधा पड़ाव पार कर लिया मैंने और जिंदगी का एक तिहाई हिस्सा इस घर में बीत गया।  ये घर जो सालों पहले मेरा ससुराल बना और अब मेरी दुनिया है।  इसी चौखट से पहली दफा इस घर में आयी थी मैं और बस यही की हो कर रह गयी। नाज़ुक हाथों में सासूमाँ  ने घर की चाभियाँ थमा दिन और कमज़ोर कन्धों पर गृहस्ती की ज़िम्मेदारी।  नयी डगर, अनजान सफर, मुश्किल रास्ते, बेपरवाह हमसफ़र।  मेरे लिए ससुराल एक चरक्रव्युह था और मैं अभिमन्यु की तरह बस इसमें आ घुसी थी... इसे पार करने का तरीका और सलीका मुझे मालूम न था।  बस हिम्मत थी और सास ससुर का मुझपर विश्वाश... कदम कई बार डगमगाए और कई बार रस्ते भटके मगर हर कदम नए मुकाम हासिल किये मैंने... दो छोटी ननदों की शादी, सास ससुर की लम्बी बीमारियां और फिर उनकी बिदाई, परिवार की पचड़े, अपने बच्चे और उनकी परवरिश, पति के साथ धुप छाँव का सफर... सब मील के पत्थर थे मेरी रहगुज़र के.... मैं चलती रही और वक़्त पंख लगा कर उड़ ग...
Image
आज जब मैंने आपनी सहेली को फोन लगाया तो वो बडे गुस्से में थी। कारण पूछने पर उसने कहा कि वो अपनी 4 साल की बेटी से झुंझलाई हुई है। विस्तार में कुरेदने पर पता चला कि उसकी बिटिया अक्षरों की सही बनावट नहीं बना पा रही थी। उसकी इस बात से पिछले दिनों अखबार में पढा़ एक लेख मुझे याद आ गया। न्यूज़ीलैण्ड की एक यूनिवर्सिटी के शोध में ये पता लगा है कि प्रीस्कूल और नर्सरी के बच्चों में कलम की पकड़ और लिखावट के तरीके में कमी पायी गयी है और नतीज़तन बच्चे पेंसिल को ठीक से नहीं पकड़ पाते जिससे अक्षर सही नहीं बनते और लिखावट भी ख़राब बनती है।  शोध के अनुसार इसका कारण  है बच्चों में बढ़ता मोबाइल फोन और इसी प्रकार के उपकरणों का इस्तेमाल।  आज कल के समय में फ़ोन एक ज़रूरत है जिससे माता पिता खुद को दूर नहीं रख पाते।  तो ज़ाहिर है बच्चों में भी मोबाइल के प्रति रुझान बढ़ रहा है।   शायद ही कोई ऐसा परिवार  जहाँ बच्चों के हाथों में मोबाइल न दिया जा रहा हो। आज कल लोरी से लेकर पढ़ाई तक और ज्ञान से लेकर मनोरंजन तक सब कुछ मोबाइल से ही जुड़ा है।  बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र से मो...
Image
आज विमेंस डे है, " महिला दिवस"... सोशल मीडिआ महिलाओं के सम्म्मान में कसीदे पढ़ रहा है।  व्हाट्सप्प, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर..... सब हैप्पी विमेंस डे के संदेशों से अटा पड़ा है।  जिन लोगो ने कभी इज़्ज़त की नज़र से देखा भी नहीं था वो भी विमेंस डे पर औरतों की महानता का बखान कर रहे हैं। मैंने भी आज कुछ अच्छा लिखने का मन बना कर बहुत कुछ सोचा... कई कवितायेँ और महान लोगों की कही बातों के आधार पर कुछ लिखने की कोशिश करती रही मगर कुछ दिल को छुने जैसा था ही नहीं। दिमाग के किसी कोने में यही था की आज विमेंस डे है, आज का ब्लॉग स्पेशल होना चाहिए।  बस मैं कुछ सटीक पा  न सकी और हार कर सोचा छोड़ो...  विमेंस डे ही तो है... आते जाते रहेंगे ऐसे दिन... एक मेरे ब्लॉग से क्या स्पेशल होगा... मगर फिर अगले ही पल मुझे ख्याल आया कि महिल दिवस तो बस एक मौका है, एक तारीक... मैं तो रोज़ ही औरतों की मार्मिक कहानिया लिखती हूँ जो उनके जीवन से जुडी हैं और उनकी भावनाओं  का प्रतिबिम्ब हैं। तो फिर आज का ब्लॉग स्पेशल कैसे होगा... आज मैं एक कहानी और लिख रही हूँ... मेरी कहानी...
Image
रोज़ की वही फेहरिस्त लिए मैं घर की कोने कोने के फेरे काट रही थी।  इसी सिलसिले में स्टोर रूम  में पहुंची तो सुशांत होठों पे खुरफारती मुस्कराहट और हाथों में कुछ अजीब रंगों के डब्बे लिए खड़े थे। ( आज कल उन्हें हर चीज़ को पेंट करने का नया शौक चढ़ा है.. सारा दिन पुतईया बने फिरते रहते हैं )  मैंने उन्हें नज़रअंदाज़ किया और अपने कामों में मसरूफ हो गई।  मेरे दिमाग की सुई, जो सारा दिन टिकटिक करती रहती है जैसे रुक गयी... मैं अपने फुकटल काम किये जा रही थी, चकरी  सी घूमे जा रही थी मगर कुछ तो था जो वहीं  का वहीँ रुका था।  मेरा दिमाग एक की लम्हा रीप्ले में चला रहा था... सुशांत की खुराफाती मुस्कराहट। ये वही मुस्कराहट थी जो मेरे जीने का सबब थी और आज मैंने उसे एक झटके में नज़रअंदाज़ कर दिया... हो क्या गया है मुझे.... रुके लम्हे में रुक गयी मैं और सब छोड़ बैठ गयी... क्या कर रही हूँ मैं...  मैंने सुशांत की खुराफाती मुस्कराहट को नज़रअंदाज़ नहीं किया, असल में मैं मुस्कुराना ही भूल गयी हूँ.... हर पल बस खीजी खीजी सी रहती हूँ... एक मायूसी सी है मेरे हर...
Image
हम मे से ज़्यादातर लोग अपने मन में चल रहे नकरात्मक विचारों से परेशान रहते हैं जिसका हमारे ज़िंदगी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ये विचार एक सफल व्यक्ति को एक असफल व्यक्ति से अलग करते हैं. कभी कभी हम मुश्किलों(problems) से इस कदर घिर जाते हैं कि हमें अपने चारो तरफ कुछ दिखाई नहीं देता है। बस हर तरफ मुश्किल ही मुश्किल दिखाई देती हैं | जो लोग इन मुश्किलो और रुकावटों के सामने थक जाते है और  हार मान लेते हैं वो मुश्किलों और रुकावटों के तूफ़ान में ही फँस जाते हैं और आगे नहीं बढ़ पाते हैं | और जो लोगबिना हारे,  इन चुनोतीयो का सामना करते है  और  आगे बढ़ते रहते है वे मुश्किलों और रुकावटों के तूफ़ान से बाहर निकल आते हैं और अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ते जाते हैं |. आज हम आपके साथ एक motivational story (प्रेरणादायक कहानी) शेयर करने जा रहे है। यह कहानी उन लोगो के लिए बहुत प्रेरणादायक (inspirational) है जो चुनोतिओ(Struggles), मुश्किलों और नकरात्मक विचारो से परेशान है और इस समय अपनी ज़िंदगी के मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं एक बार एक बच्ची अपने पिता से शिकायत करती है की उसकी ज़िंदगी मुश्किलो...
Image
एक दिन की बात है जब एक मनोवैज्ञानिक अध्यापक छात्रो को तनाव से निपटने के लिए उपाय बताता है। वह पानी का ग्लास उठाता है। सभी छात्र यह सोचते है की वह यह पूछेगा की ग्लास आधा खाली है या आधा भरा हुआ। लेकिन अध्यापक महोदय ने इसकी जगह एक दूसरा प्रश्न उनसे पूछा ”जो पानी से भरा हुआ ग्लास मैंने पकड़ा हुआ है यह कितना भारी है?” छात्रो ने उत्तर देना शुरू किया। कुछ ने कहा थोड़ा सा तो कुछ ने कहा शायद आधा लिटर, कुछ ने कहा शायद 1 लिटर । अध्यापक ने कहा मेरे नजर मे इस ग्लास का कितना भार है यह मायने नहीं रखता। बल्कि यह मायने रखता है की इस ग्लास को कितनी देर मै पकड़े रखता हूँ। अगर मै इसे एक या दो मिनट पकड़े रखता हूँ तो यह हल्का लगेगा, अगर मै इसे एक घंटे पकड़े रखूँगा तो इसके भार से मेरे हाथ मे थोड़ा सा दर्द होगा, अगर मै इसे पूरे दिन पकड़ा रखूँगा तो मेरे हाथ एकदम सुन्न पड़ जाएँगे और पानी का यही ग्लास जो शुरुआत मे हल्का लग रहा था उसका भर इतना बाद जाएगा की अब ग्लास हाथ से छूटने लगेगा। तीनों ही दशाओ मे पानी के ग्लास का भार नहीं बदलेगा लेकिन जितना ज्यादा मै इसे पकड़े रखूँगा उतना ज्यादा मुझे इसके भारीपन का एहसास होता ...